सोचों सुरज होते दो तो क्या होता
कभी मैँ आता या वो
मिल जाती छुटटी मुझे भी कभी
फिर ना निकलना पड़ता रोज सवेरे कभी
सोचो सुरज होते दो तो क्या होता
जाता मैं भी कभी सैर सपाटे पर
ले जाता बीवी बच्चों को भी चौपाटी पर
सोचो सुरज होते दो तो क्या होता
खाता मैं भी पानी पूरी एक ही निवाले में
और लेता मैं सुस्ता दिन के उजाले में
सोचो सुरज होते दो तो क्या होता
नहीं उठना पड़ता सुबह पांच बजे
सोता मैं भी देर रात बारह बजे
सोचो सूरज होते दो तो क्या होता
कभी मैं भी जाता मैटेनी शो
और करता देर रात क्लब का वॉव
सोचो सुरज होते दो तो क्या होता
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