Monday, May 4, 2015

आज फिर वही दोपहर

आज फिर वही दोपहर 
सब शांत और एक ठहरा हुआ पहर 
खिड़की के बाहर देखती हूँ फिर वही धुप की सहर 

आज फिर वही दोपहर 
आजकल दो चिड़ियाऐ आती है बरामदे में इस कदर 
जैसे मिलते है दो दिल छोड़ के दुनिया की हर फिकर 

आज फिर वही दोपहर
अब रोज ही लगा रहता है चिड़ा चिड़ी का मिलन इस पहर 
शायद प्यार की बातें करते है वो इतनी सारी  पटर पटर 

आज फिर वही दोपहर
बैठी हूँ आज फिर चिड़ा चिड़ी को देखने हो कर बेसबर
पर आज चिड़ी नहीं आई बिना दिए कोई ख़बर 

आज फिर वही दोपहर
चिड़ा रोज आता रहा लेनेको चिड़ी की खोज ख़बर 
लेकिन चिड़ी नहीं आई फिर कभी उस बरामदे में किसी दोपहर 

आज फिर वही दोपहर
अब सिर्फ हम दोनों ही होते है मैं और चिड़ा इस समय  इस पहर 
सोचते है कब आएगी चिड़ी छोड़के दुनिया की रस्मे और होके बेफ़िकर  

आज फिर वही दोपहर
  

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